तुम्हारा आकाश
तुम्हारा आकाश
अफगान महिलाऐं (2001)
तुम्हारा आकाश
क्या सचमुच इतनी जगह थी तुम्हारी उम्मीदों की गुफाओं में !
वहीं तो सम्भाल कर रखे होंगे तुमने ये पंख
वरना नोंच लिऐ जाते जो
नोंच लिऐ गऐ होंगे जैसे कितनों ही के।
आज आकाश तुम्हारा है
और यह उड़ान भी
आकाश जिसका मुरीद है।
कितने मुक्त तो दिख रहे हैं तुम्हारे पाँव
राहत की मिली साँसों से
घुटी इच्छाओं सी बँधी राहें अब निकल पड़ी हैं जिनसे धाराओं सी
देखो तो कैसे आ खड़े हैं सामने
ये सुन्दर सुन्दर गबरू खान भाइयों के से लक्ष्य।
खींच ली गई थी जो जमीन तुम्हारे नीचे से
और फेंक दिया गया था जिसे किसी कोने में
पुराकथा के किसी पात्र सा
आज देख रहा हूँ उसे लौटते
सम्भाल सम्भाल रखते पाँव
तुम्हारे सहारे सहारे।
बरसों बाद आज लौटेगा काबुली वाला, मेरा दोस्त अपने वतन को
ठूँस ठूँस भर ली हैं उसने जेबें
शहनाइयों की मिठास से।
ख़ुशियों के जाने कितने जेवरात
उसने रख लिऐ हैं अपनी आँखों में।
बस्तों का एक पूरा हुज़ूम
उसने सँजो लिया है जजबातों में।
उसके हाथों में कलम है
और सभ्यता रचने को
एक बेहतरीन कागज़।
देखना खिड़कियों की छलनियों के पीछे की तुम्हारी आँखों को
ला खड़ा करेगा वह दुनिया के तमाम दृष्यों के सामने, रूबरू
जिन्हें फिर कभी कोई ज़ुर्रत नहीं कर सकेगा छीनने की तुमसे
तुम्हारी ताकत के सामने।