नशा को "ना"
नशा को "ना"
नशा-व्यसन से ऊपर उठकर
देखें, सूरज नया निकला है।
मादक-सेवन से बंधु मेरे सुनो
विचारों किसका हुआ भला है।
धुँआ विष से कम तो नहीं है
मद्य बना अमृत कहीं है ?
स्व-स्वजनों के पतन का कारक
मोहक प्रचारों ने बहुत छला है।
वो करेंगे दुष्प्रचार -आडंबर
लुभाएंगे छल-प्रपंच कर।
उनको क्या आपके स्वास्थ्य से
उनका तो कारोबार चला है।
लक्ष्य हो उन्नत-स्वस्थ जीवन का
न कि व्याधिमय मरण का।
कितनों के फेफड़े जलाए इसने
कितनों का जबड़ा-मुँह गला है।
क्यूँ कूल डूड बनने का चक्कर
या होती देनी किसी को टक्कर।
जिसने बोतल-सिगरेट उठाएं
बाद में जीवन से हाथ मला है।
स्वविवेक से बढ़कर क्या है?
अपनाएं उत्तम विचार नया है।
जिसने भी "ना" है कहना सीखा
सर्वांगीण विकास से वही फला है।
युवाजन शिक्षित मुखरित हों
भारत के जन-जन हर्षित हों।
युवा चलें सुपथ पर नित, छोड़े
व्यसन जो अब तक खला है।
अब भी वक्त है, आओ चेते
विवेकानन्द जी के विचार लेते।।
भारत-भरतवासी हो उन्नत अब
दूर करें नशा मानकर ये बला है।