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Sandeep Gupta

Romance

4.9  

Sandeep Gupta

Romance

मैं तो वही हूँ, बदल गया तू

मैं तो वही हूँ, बदल गया तू

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मैं तो वही हूँ,

बदल गया तू,

पेड़ 'खड़ा'

कहता है मुझसे।


तू वो नहीं,

जिसे, में था जानता।

तू वो नहीं,

जो, मुझे अपना था मानता।


पुश्तें तेरी, मेरी छांव में पली,

पुश्तें तेरी, मेरे फल खा बढ़ी,

मैं खड़ा खड़ा भी बना तुझसे बड़ा,

तू घूम घूम दुनिया भी छोटा ही रहा।


मैं तो वही हूँ,

बदल गया तू,

नदी 'बहती' कहती है मुझसे।


तू वो नहीं,

जिसे, में थी जानती।

तू वो नहीं,

जो, मुझे अपना था मानता।


पुश्तें तेरी, मेरा जल पी जियी,

पुश्तें तेरी, मुझमें तरी,

मैं घूम पर्वत जंगल, निर्मल बनी,

तू घूम दुनिया, दुर्जन बना।


पेड़ 'खड़ा' कहता है मुझसे,

नदी 'बहती' कहती है मुझसे,

ग़ुरूर तेरा, अब, तुझसे हुआ बड़ा,

पाप का, अब, घड़ा तेरा भरा,

तू सोचता है तुझसे है दुनिया,

तू सोचता है तू सबसे बड़ा।


सच से तू मीलों दूर खड़ा,

चाँद पर जाना है जा,

मंगल पर बस्ती बसा,

कौन तुझे है रोकता।


पेड़ 'खड़ा' कहता है मुझसे,

मैं हूँ खड़ा, जहाँ था खड़ा,

आ, मुझे गले लगा।


नदी 'बहती' कहती है मुझसे,

पास तेरे मैं हूँ बह रही, 

आ, मुझे तू अपना बना।


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