असीफ़ा के लिए न्याय
असीफ़ा के लिए न्याय
इस पर सोचने मात्र से ही
ह्रदय द्रवित हो जाता है
व्याकुल ,विचलित हो जाता है
दर्द की पराकाष्टा से परे
जो मेरी कल्पनाओं से दूर है
सिहरन सी दौड़ती है
भय से अंतस में चीख गूंजती है
रोष उमड़ने लगता है
रोम-रोम ज्वलित हो उठता है
अंगारे आँखों में उतरने लगते हैं
उन दरिंदो के अस्तित्व अखरने लगते हैं
वो मासूम सी बच्ची
वहशी जल्लादों के द्वारा कुचली गयी
उन्होंने भी, जिनकी बचाने की जिम्मेदारी थी
दरिंदगी की सीमाओं को पार किया
महज आठ साल की बच्ची का सामूहिक बलात्कार किया
घिनौनी इंसानियत की हद तो देखो
राम के नारे वालो ने
पुलिस का घेराव किया
निगाहें ताकती रहीं इन्साफ के रहनुमाओं को
वो तो उन भेड़ियों के हमजात हो गये
न्याय की गुहार ऐसे माहौल में
दूर की कौड़ी हो रही है
देश के आका भरोसे के काबिल नहीं
और –आवाम है, जाने कौन सी नींद में सो रही है ?
दलाल मिडिया और घटिया राजनीती
और वीभत्स हो रही है
आठ साल की बच्ची की चीखों से परे
इन पर साम्प्रदायिकता हावी हो रही है
उन्नाव और कठुआ तो नज़ारे हैं
हालत के तो इससे बदतर इशारें हैं .
बची है जितनी साँसें
शेष है जितना आँखों में पानी
झोंक दो इस बार खुद को
इस समर में
चेतना खोने से पहले
ढोंगी राष्ट्रवाद व् धूर्त धर्म
की खुराक होने से पहले
उन मासूम चीखों के
अपने गलियारों तक पहुँचने से पहले !