ग़ज़ल :-
ग़ज़ल :-
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ग़ज़ब है आजकल कोई किसी के घर नहीं जाता ।
ग़रज़ इल्ज़ाम भी अब ये किसी के सर नहीं जाता ।
मुझे दुनिया ये पागल तो कभी दीवाना कहती है ।
अगर ऐसा ही होता तो ,मैं अपने घर नहीं जाता ।
गुज़ारा अब मेरा तन्हाइयों,वीरानियों से है ।
मुहब्बत थी उसे तो मुझसे वो बाहर नहीं जाता ।
मैं उस सय्याद को भी आज़माना चाहता था अब ।
जो डर होता कोई तो ख़ुद, निशाने पर नहीं जाता ।
बड़ी गहरी हैं बुनियादें ,तो खुद्दारी का सौदा भी ।
किसी भी हाल में दीवाना ये दर दर नहीं जाता ।