शिक्षा बनी व्यापार
शिक्षा बनी व्यापार
व्यवसाय अब हो गया,
शिक्षा का आधार।
अभिभावक सब झेल रहे,
इसकी भारी मार।
सुरसा मुख सी बढ़ रहीं,
स्कूलों की फीस।
भर-भर कर बेहाल जनक,
हृदय में उठती टीस।
बिना पढ़ों का दौर अब,
रहा नहीं है भाई।
पर जी का जंजाल हुई,
बच्चों की पढ़ाई।
खून-पसीना एक कर,
जोड़ें पाई-पाई।
स्कूलों के पेट में,
सारी गई समाई।
भारी पहले न लगती थी,
दस बच्चो की पढ़ाई।
दो बच्चों की शिक्षा नें अब,
माँ-बाप की नींद उड़ाई।
काश ! योजना ऐसी कोई,
ले आए सरकार।
तालों में अब बंद हो,
स्कूली व्यापार।