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भावुकता का सूरज खिला न पाये

भावुकता का सूरज खिला न पाये

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किस्मत की लकीरों से जो हम तुमको संजोयें रहते थे

इन दो नयनों के भीतर हरदम तुमको छुपाये रहते थे 

हाथो की क़िस्मत जगाने को हम तुमपे मरते रहते थे

खुद की बदहाली पे अकेले बैठ आंहे भरते रहते थे

खुद क़िस्मत के लोग अक्सर दुनिया में वो पाये जातेे थे

जो खुद प्यार मोहब्बत की नसीहत देते फिरते रहते थे 

अनजान होकर प्यार की सितम से बच पाना मुश्किल था

सपनों में भी उससे बाते कर पाना आँखों में चुष्टी था

सांसों की दो बूँदो में उसको कैसे अमिय बनाकर पी लेते 

ज़ख्मो के साये में खुद को कैसे जख्मी उसको बतला देते

खुशियों के महलों में बैठे लोग प्यार को सब समझते थे

झोपड़ियों में रहने वालों को बदनाम किया करते रहते थे 

भावुकता का सूरज हम अपने चेहरे पर खिला न पाये 

रोशनी में भी हम उजालों की तरफ कदम बढ़ा न पाये

मिन्नते की  बहुत मंदिर मस्जिद उसको पा लेनी की

पर सांसों के अनुबंधन में उसको कभी रोक न पाये

  

सिलसिला प्यार का अपनाने को नयनों में उसे देख न पाये

रात भर नींदों के ख्वाबो में उससे कुछ बाते यूँ न कर पाये

गुमनाम तस्वीरे उसकी रख दिल के साये में सो न पाये

प्यासे होकर धरती- अम्बर चांद तारों से बाते यूँ न कर पाये 


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