देश
देश
भोर भई अब जग जा प्यारे,
कब तक देश तू सोएगा?
कब तक दूजे पाप करेंगे?
और गंगा में तू धोएगा?
नेता हो या हो व्यापारी,
सब आते एक भेष में।
लूट खसूट के जाते हैं वो,
और दुर्बल मरता देश में।
कब तक वो फ़सलें काटेंगे?
कब तक बस तू बोएगा?
भोर भई अब जग जा प्यारे,
कब तक देश तू सोएगा?
बलिदानों की आग है तू,
है तुझको क्यों परवाह नहीं?
मशगूल हुआ तू ख़ुद में इतना,
देश के ज़ख़्म से आह नहीं।
कब तक अत्याचार सहेगा?
ख़ुद को स्वेद में भिगोएगा।
भोर भई अब जग जा प्यारे,
कब तक देश तू सोएगा?
दिखला दे अब जन की ताक़त,
आंदोलन फिर लाना है।
भगत सिंह के इंक़लाब को,
लहू में फिर से जगाना है।
कब तक कोसेगा क़िस्मत को?
कब तक फूट तू रोएगा?
भोर भई अब जग जा प्यारे,
कब तक देश तू सोएगा?
कब तक केवट की राह को तकते,
ख़ुद को मँझधार में डुबोएगा?
भोर भई अब जग जा प्यारे,
कब तक देश तू सोएगा?