पता नही क्यूँ लोग ?
पता नही क्यूँ लोग ?
पता नहीं क्यूँ लोग
कटी पतंग जैसी
जिंदगी जीते हैं ?
वही गलतियाँ जाने क्यूँ
बार-बार दोहराते हैं ?
खुद कि जिंदगी
तमाशा बन बैठी।
समझ ही नही पाते हैं !
कहते, "यह तो सिर्फ झाँकी हैं
पिक्चर अभी बाकी हैं।"
उनकी सोची समझी चाल
काश ! यह समझ पाते।
यूँ ही अपनी जिंदगी
नरक ना बनती।
ना सबको
कीमत चुकानी पड़ती ।
धर्म जात पर उकसाना
दंगे फसाद करवाना !
मासूम सा चेहरा बनाके
काम अपना निकालना।
उनकी तो पुरानी आदत है
हम क्यूँ नहीं समझ पाते ?
जाने क्यूँ उनके बहकावे में
बार-बार आते हैं !!