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Manas Mishra

Others

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आदमी फिर आदमी से दूर होना चाहिऐ

आदमी फिर आदमी से दूर होना चाहिऐ

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आदमी फिर आदमी से दूर होना चाहिऐ
अब यही क्या मुल्क़ का दस्तूर होना चाहिऐ

सब सरों पर हो कफ़न ये आस जिनकी है यहाँ
उन वतन के काफ़िरों को दूर होना चाहिऐ

रो रहे संसद में बैठे सब शहीदों के जतन
उन शहीदों के लिए बस नूर होना चाहिऐ

अब कहाँ मिलती है रौनक खाक़ शहरों की हवा
अब वतन के माँग बस सिन्दूर होना चाहिऐ

बो रहे जो हिन्द की आमद में अब काँटे यहाँ
उन वतन के दुश्मनों को चूर होना चाहिऐ

ये कहाँ की सोच है और ये कहाँ का फलसफ़ा
हर घड़ी हमको यहाँ मजबूर होना चाहिऐ

ऐ ख़ुदा जो है अता की तुमने इस 'मन' को शिफत
मुल्क के ख़ातिर मुझे मशहूर होना चाहिऐ

मानस"मन"


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