तू ऐसे ही रहने दे
तू ऐसे ही रहने दे
हमारे इश्क़ को तू
अब अधूरा ही रहने दे
मैं बहता दरिया हूँ
तू खुद को सागर रहने दे
मिज़ाज़-ए-मौसम भी
अब रंगीन हो गया है,
गालों पर ये बिखरा गुलाल
ऐसे ही लगा रहने दे
बुझा दे इन चिरागों को
बेवजह उजाला करते हैं
दूर आसमां में सितारों को
तू ऐसे ही टिमटिमाने दे
इबादत में तेरी कुछ तो
कसर बाकी रही है,
तू अपने हक़ की कुछ दुआएं
अब मुझको पढ़ लेने दे
बेनकाब कर इस चेहरे को
राज़ को बेपर्दा कर,
आँँखों का मरा पानी
ज़रा मुझे भी तो देख लेने दे
बदल ले तू अपना रुख
लौट जा अपनी गली
मुन्तज़िर - सा तू मुझको
उस राह पर खड़ा रहने दे...।