तुम्हारी याद, आसपास फैली रात्रि से उभरती हुई
नदिया का
जिद्दी बहाव
आक्रँद लिये, सागर में समाती हुई
बंदरगाह पर सूने पड़े ज्यों गोदाम, सुबह के धुँधलके में
- और यह सामने आती प्रस्थान - बेला,
ओ छोड़ कर जाने वाले!
भीगे फूलों के मुख से रिसता बरसता जल,
मेरी हृदय कारा पर!
टूटे हुऐ सामान का तल, भयानक गुफा, टूटी कश्ती
-तुम्हीं में तो सारी उड़ानें, सारी लड़ाईयाँ, इकट्ठा थीं!
-तुम्हीं से उभरे थे सारे गीत, वे मधुर गीत गाते पंछियों के पर
-एक दूरी की तरह!
सब कुछ निगलता यथार्थ
-- बहते दरिया की तरह!
समुद्र की तरह, डूबता, सब कुछ, तुम में
वह ख़ुशी का पल, आवेग और वेग चुम्बन का!
दीप -स्तंभ सा रौशन वह वह जादू - टोना!
उस वायुयान चालक सा ख़ौफ ,
वाहन चालक का अंधापन,
भँवर का आंदोलित नशा, प्यार भरा!
तुम्हीं में डूबता, सभी कुछ!
बचपन के धुँधलके में छिपी आत्मा,
टूटे पंखों - सी,
ओ छूटने वाले, खो जाने वाले ,
है, खोया सा सब कुछ!
दु:ख की परिधि तुम
जिजीविषा तुम
-- दु:ख से स्तंभित -
तुम्हीं में डूब गया, सब कुछ !
परछाइयों की दीवारों को मैंने पीछे ठेला
--मेरी चाहतों के आगे, करनी के आगे,
और मैं, चल पड़ा!
ओ जिस्म! मेरा ही जिस्म!
सनम! तुझे चाहा और, खो दिया!
-- मेरा हुक़्म है तुम्हें,
भीने लम्हों में आ जाओ,
मेरे गीत नवाजते हैं -
बंद मर्तबानों में सहेजा हुआ प्यार
- तुम में सँजोया था
और उस अकथ तबाही ने,
तुम्हीं को चकनाचूर किया!
वह स्याह घनघोर भयानकता,
एकाकीपन! द्वीप की तरह
-और वहीँ तुम्हारी बाँहों ने सनम,
मुझे, आ घेरा
--वहाँ भूख और प्यास थी और तुम,
तृप्ति थीं!
दु:ख था और थे पीड़ा के भग्न अवशेष !
पर करिश्मा, तुम थीं !
ओ सजन ! कैसे झेला था तुमने मुझे, कह दो ~
-- तुम्हारी रूह के रेगिस्तान में,
तुम्हारी बाँहों के घेरे में
-मेरी चाहत का नशा,
कितना कम और घना था।
कितना दारुण, कितना नशीला,
तीव्र और अनिमेष!
वो मेरे बोसों के श्मशान,
आग, अब भी बाक़ी है !
कब्र में --फूलों से लदे बाग,
अब भी जल रहे हैं,
परवाज उन्हें नोच रहे हैं!
वह मिलन था -- तीव्रता का,
अरमानों का - जहाँ हम मिलते रहे!
ग़मख्वार होते रहे!
और वह पानी और आटे सी महीन चाहत ,
वो होंठों पर, लफ़्ज़ `
कुछ, फुसफुसाते हुऐ !
-यही था, अहलो करम,
यही मेरी चाहतों का सफ़र
-तुम्हीं पे वीरान होती चाहत, तुम्हीं पे उजड़ी मुहब्बत!
टूटे हुऐ, असबाब का सीना,
तुम्हीँ में सब कुछ दफ़न!
किस दर्द से तुम नागवार,
किस दर्द से, नावाक़िफ?
किस दर्द के दरिया में तुम, डूबी न थीं?
इस मौज से, उस माझी तक,
तुम ने पुकारा!
गीतों को सँवारा! कश्ती के सीने पे सवार,
ना ख़ुदा की तरह --
-- गुलों में वह मुस्कुराना,
झरनों में बिखर जाना,
तुम्हारा,
उस टूटे हुऐ, असबाब के ढेर के नीचे,
खुले दारुण कुऐं में !
रंगहीन, अँधे, गोताखोर,
कम नसीब, निशानेबाज
भूले भटके, पथ - प्रदर्शक,
तुम्हीं में था सब कुछ, फ़ना!
यात्रा की प्रस्थान बेला में,
उस सख़्त, सर्द पल में,
जिसे रात अपनी पाबंदियों में
बाँधे रखती है!
समंदर का खुला पट -
किनारों को हर ओर से घेरे हुऐ
और रह जाती है, परछाईयाँ
मेरी हथेलियों पे!
कसमसाती हुई -
-सब से दूर --- सभी से दूर
---इस विदाई के पल में!
आह! मेरे, परित्यग्त जीवन!
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