इस बरसात में
इस बरसात में
इस बरसात में
सोचती हूँ
धो डालूँ
वो सारे मन के मैल
जो
रह - रह कर
मुझे जताते हैं
कि मैं किस गंदी
नाली में पड़ी हूँ
हाँ !
वही गंदगी
जो तुमने
कभी मेरी झोली में
डाली थी
मैं हर पल मरती रही
और तुम
जीते रहे
पर आज
जब न मुझ में
जीवन का और
न ही मृत्यु का भय है
मैं माफ़ करना चाहती हूं
तुम को
क्योंकि
हर रात की टीस पर
देती थी तुम्हें
उस दर्द की बददुआ
जिसकी तुम
कल्पना भी नहीं कर सकते
मगर
अब और नहीं
तुम्हें जीना होगा
और देखनी होगी बारिश
अपने कर्म फलों की
इसी जन्म में
क्योंकि
मैंने तो माफ़ कर दिया
परंतु
आत्मा के क्रंदन से
जो दर्द बहते थे
उनका हिसाब
मैं नहीं लगा सकती
वो तो
हिसाब लेंगी
एक वेश्या के
जली अस्मत की
भींगी राख
इस बरसात में।