जख्म
जख्म
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जख्म अभी है हरे-हरे
चोट अभी भरी नहीं
नासुर ना बन जाये ये
इसलिये हम छिपाकर रखते नहीं।
मरहम वह मिला नहीं
जो घाव को भर सके
जिसे समझ दवा
लगाये थे सीने से,
बेईमान वही दर्द दे बैठे।
उनके गुनाह के लिये
तड़पता है दिल,
पर आह निकलती नहीं
कैसे दे बददुआ जुबाँँ से
दिल बात खुद की ही
मानता नहीं।
ये बात और है कि
धोखा जो मिला वो भूलेंगे नहीं
क्योंकि यह भी एक सबक था
दुनीया के नये नये रूप का।
तू भी याद रखना सितमगर
हम बक्श भी देंगे तुझे।
पर वक्त हिसाब माँगेगा तुझसे।
क्योंकि वक्त ही छिना है तूने हमसे।