दोस्ती के गुल
दोस्ती के गुल
फेंका था तूने कीचड़ में पत्थर,
मेरे बाद वो तुझे भी मिल रहे हैं।
अरे, देख रहा है ना तू कि
हमारी दोस्ती के गुल खिल रहे हैं।
काश तूने भी मेरी तरह कुछ,
कदम अनमोल बढ़ाये होते।
काटों की जगह तूने भी कुछ,
फूल राहों में बिछाये होते।
सुना है आजकल हमारे ही,
चर्चे हर जगह पर चल रहे हैं।
अरे तभी तो कह रही हूँ कि,
हमारी दोस्ती के गुल खिल रहे हैं।
जिगरी बनाया था जिनको कभी,
अब वो सभी दुश्मन में बदल गए।
राज छुपाये रखे थे जो उनके पास,
सभी नए तरीके से खुल गए।
गिरते हुए तो देखे थे बहुत पर अब,
देखो हम किस तरह संभल रहे हैं।
सच ही कहा था मैंने कि,
हमारी दोस्ती के गुल खिल रहे हैं।
तुम चुपचाप यूँ ही चले जाते,
तो शायद बहुत अच्छा होता।
यादों में जहर घोल ना पाते,
तो वाकई अच्छा होता।
क्योंकि तेरे जाने के बाद जाने क्यों,
तेरे जैसे हर रोज मिल रहे हैं।
अरे, इसलिए तो लगता है कि,
हमारी दोस्ती के गुल खिल रहे हैं।