आख़री ख़त
आख़री ख़त
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आज ज़िन्दगी की राहें छोड़ चली मैं।
मौत का दामन ओढ़ चली मैं।
हर गिला शिकवा पीछे छोड़ चली मैं।
दर्द का रस्ता आज मोड़ चली मैं।
जहां ज़िन्दगी ने न अपनाया मुझे ,
मेरे अपनों ने भी ठुकराया मुझे ,
उस तन्हाई के एहसास को साथ लिये
मौत से रिश्ता जोड़ चली मैं।
न रास आयी मुझे ज़माने की रुसवाई
बस हाथ लगी ठोकर और तन्हाई
आज हर ग़म को बाहों में समेटे हुए
ज़िन्दगी से नाता तोड़ चली मैं।
तलाश थी मुझे जिस आशियाने की
ज़िन्दगी से न मिली वह ख़ुशी फ़साने की
खुली आँखों से जो धोखा दिखा नहीं
बंध आँखों ने दिखा दी सच्चाई ज़माने की।
कसमें खायी थीं जिन्होंने
आख़री दम तक साथ निभाने की
जनाज़ा उठने भर की देर थी बस
ज़हमत भी न थी उनमें मेरा मातम मनाने की।
सच्चा आशिक़ तो मौत था मेरा
प्यार से गले लगा लिया
जहाँ ज़िन्दगी ने ठोकर मारी मुझे
पलकों पे इसने मुझे छूपा लिया।
सारे आंसू तकलीफें पीछे छोड़े
आख़री अलविदा कह चली मैं।
मुबारक हो तुम्हे यह संगदिल दुनिया
मुबारक हो तुम्हे यह संगदिल दुनिया
आज प्यार की राहों में बढ़ चली मैं।