गुज़ारिश
गुज़ारिश
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रात का नशीलापन, सुबह की ताज़गी
मस्तियाँ दोपहर की, शाम की आवारगी.
गजरे की भीनी सुगंध, खनखनाती चूड़ियाँ
माथे का माँग-टीका, हुस्न की सादगी.
चार चाँद लगते हैं पहनो जब, चंद्रहार
चाल हिरनी जैसी या मोरनी सी बानगी.
सुर्ख़ होठों सॆ तुम जो चार शब्द बोल दो
इश्क़ के पास जा, कर रहा कोई बंदगी.
क्षितिज की ललाई, चेहरे पर छा जाती है
दूर होती प्रियतम सॆ, बेवजह नाराज़गी.
झूठे अहं ने हमको कर दिया दरकिनार
त्रिभवन अब छोड़ दो, बेफ़िजूल दम्भगी.