ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
हर ख्वाब नई उम्मीद जगाता है,
फिर न जाने कहाँ गुम हो जाता है,
हम भी बदलते हैं,
ख्वाब भी बदल जाता है,
उम्मीदों का हर अल्फ़ाज़ बदल जाता है ।।
कि याद आता है कोई,
जब छोड़ कर चला जाता है,
हर उम्मीद हर सपनों को,
तोड़ कर चला जाता है ।।
फिर हम सोचते थे जिनके बिना,
ज़िन्दगी के क्या मायने,
हमारा आज, हमारा कल,
उनके बगैर भी संभल जाता है ।।
फिर ज्ञात होता है हमें,
की चल रहे हम तो अकेले ही हैं,
हैं साथ जो वो भी तो,
अपने-अपने पथ के राही हैं ।।
परंतु, उम्मीदें टूटती नहीं हैं,
ख्वाबों की डोर छूटती नहीं है,
जब याद आता है कोई अपना,
फिर कहीं किसी रोज़,
हम खुद से सवाल करते हैं-
कैसे जी गए हम उनके बिना भी ?!