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Rashmi Prabha

Comedy

5.0  

Rashmi Prabha

Comedy

दीदार

दीदार

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653


लो फिर आया प्यार का दिन 

और ऋतुराज बसंत 

प्यार की राह में 

लाल गुलाब के लफ्ज़ लिए

हीर रांझे को ढूंढ रहे ...


अरे बसंत 

जिधर नज़र डालो उधर

गले में बाँह डाले प्यार 

जिल्लेइलाही को ठेंगा

दिखा रहा है !

तुम किस दौर में झूम रहे ?

फूलों के जहाँपनाह 

अब कलियाँ भौरों का

इंतज़ार नहीं करतीं 

भौंरों के पीछे दौड़ जाती हैं 

पहले तो एक नज़र के

दीदार को तरसते थे न प्रेमी 

अब ..... एक गुलाब से भी

दिल नहीं भरता ..


ओह बसंत -

इस प्यार वाले दिन 

पहली तारीख की सैलरी

जैसी ख़ुशी होती है 

अरे हाँ वही अंग्रेजी में

वैलेंटाइन डे ....

बित्ते भर कपड़ों में हीर 

उजड़े बालों में रांझे 

बिजली के तार से बिखरे

मिलते हैं 

अजी किसकी मजाल है 

जो उनके बीच में आये !

मुश्किल से मिले इज़हार के

दिन को जी भरके जीते हैं

आज के रांझे और हीर 

एक फूल इसको

एक फूल उसको 

दोनों तरफ अप्रैल फ़ूल

का गेम चलता है !

फूलवाले की चाँदी,

टेडी बिअर की दुकान में

भीड़ ही भीड़ 

पुलिसवाले भी पकड़ने

लगते हैं प्रेमियों को 

ताज़ी खबर के लिए 

जबकि यह तो हर

दिन का नज़ारा है 


आह !

खो गई सब चांदनी रातें 

दोपहर की धूप में धीरे से

छत पर पहुंचने की

कोई कवायद नहीं 

कैसे कहें हाल की

समस्या नहीं।

अमां बसंत,

मोबाइल पर फटाफट

चलती उंगलियाँ 

आधी रात तक महाकाव्य

लिखती हैं प्यार का 

और वैलेंटाइन तो स्टाइल है 

प्रेम को सरे राह दिखाने का 

तो आराम से देखो -

फिर आया है प्यार का दिन 


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