फिक्र
फिक्र
अमीर की फिक्र है कि,
उसका हिस्सा टैक्स में जाता है।
गरीब की फिक्र है कि,
कमाते ही खत्म हो जाता है।
माँ की फिक्र की,
उसका बेटा खाना कब खाता है ?
काम की फिक्र ऐसी कि,
बेटा खाते ही सो जाता हैं।
बाप की फिक्र कि क्या,
बेटा उनके कदमों पे चल पाएगा ?
बेटे की फिक्र है कि,
वो कैसे कुछ नया कर दिखाएगा।
बेटी की फिक्र कि क्या वो,
कभी बाप का नाम कर पाएगी ?
और बाप की फिक्र कि,
बेटी ससुराल कैसे जाएगी ?
पत्नी की फिक्र कि क्या वो,
सपनों को संजो के रख पाएगी ?
और पति की फिक्र है कि क्या,
बीवी हर बार खरी उतर पाएगी ?
सास की फिक्र है कि,
बहू माँ बेटे में दूरी बनाएगी।
बहू की फिक्र कि क्या वो,
सास को माँ बना पाएगी ?
फिक्र ही फिक्र है अब रिश्तों में,
पर कद्र है जो घटती जा रही है।
फासलों का ख्याल है जिन्हें,
उनमें ही दूरियाँ बढ़ती जा रही है।