विडम्बना
विडम्बना
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मैं मरने से
नहीं डरती
परन्तु
दूसरों की मौत से
डर लगता है,
मैं इसे अपना
साहस मानूँ
या
अपनी कमजोरी
वह भी सच है
मैं जानती हूँ
फिर भी परेशान हूँ
रात आते ही न जाने क्यूँ?
दिन की रंगीनियाँ
उदासियों में परिवर्तित हो जाती हैं
दिल घबराने लगता है
ख़ामोशी से
एक अज़नबी दहशत
अँधियारा पैदा करती है
मेरी सारी खुशियाँ न जाने
कहाँ खो जाती हैं |