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संदूक

संदूक

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मालूम है कि
चींटियाँ जब जाती हैं
यात्रा में तो
तो साथ में कुछ नहीं ले जाती

और अपने मोर्चे में नाकाम भी नहीं होती

उन्होंने किसी की बात भी नहीं मानीं

एक हम है जो 
हर रोज़ मोर्चे का एजेंडा बदलते हैं
प्यार भी करते हैं तो
पहले पढ़ते हैं कुछ दोहे
एकाग्र होने के लिए
ध्यान का अभ्यास करते हैं
बार-बार गर्व करते हैं
या आँसू भरते हैं आँखों में
और लिख-लिख कर खर्च कर देते हैं
इतने कलम-कागज़

हम अपने हाथ में
हमेशा लेकर चलते हैं
कुछ हथियार,
कुछ विजय,
कुछ पराजय,

और इतिहास में जाकर बैठ जाते हैं
जहाँ लिखा जाता है कि
हमने सब किया पर
अपनी परंपरा के संदूक को नहीं छोड़ा था।

हम अपनी संदूकों को इस तरह साथ लेकर दौड़े
कि दौड़ भी नहीं सके।


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