ज़िंदगी ही तो है
ज़िंदगी ही तो है
भोर की लाली में
सुबह का आह्लादित नज़ारा
आँखों में ना उतरे तो क्या हुआ...
महज़ सुबह ही तो है गुज़र जाने दो..!
दिन की तपीस में भी काम ना भाये
महज़ दिन ही तो है गुज़र जाने दो,
रंगीन शाम के नज़ारे में ना आये कॉफ़ी
और दिलबर की याद,
उफ्फ.छोड़ो यार शाम ही तो है ढ़ल जाने दो...!
रात के सन्नाटे में
चाँदनी के आगोश में
तारों संग ना बतियाए तो क्या हुआ,
काली रात ही तो है यूँ ही गुज़र जाने दो..!
दरिया का साहिल और गीली रेत की नमी
देख छोटा सा घर बनाने को
दिल ना ललचाए जाओ घर महज़
दरिया ही है बह जाने दो..!
सावन की पहली फ़ुहार में
अंग बचाकर छज्जे के नीचे छूप गये
नहाने को रुक गये तो क्या हुआ
मौसम ही तो है बीत जाने दो..!
बच्चे की किलकारियाँ भी मन को ना छू पाये
तो क्या हुआ महज़ मस्ती के पल है गुज़र जाने दो..!
नादानियाँ, मस्ती, भूल इंसान की फ़ितरत है
ज़िन्दगी में जो ये सब ना किया तो क्या हुआ
महज़ फ़ितरत ही तो है उससे परे क्यूँ जाना जाने दो....!
ज़िन्दगी की तान में हर शैय संग मुस्कुराना
ना आये तो लानत है,
क्या हुआ महज़ ज़िन्दगी ही तो है
कट ही तो रही है कट ही जाने दो..!
यारो, बारिश आये तो भीग जाया करो
ज़िन्दगी के हर मौसम को आज़माया करो
ज़ाहिर ना करो उम्र के हसीन लम्हे
बटोर लो अपने हिस्से की खुशियाँ
दिल की आरज़ू उपर वाले को फ़रमाया करो।।