मैं और मेरी आत्मा
मैं और मेरी आत्मा
द्वंद है कि मैं हूँ या मेरी आत्मा
ज़िन्दा मैं हूँ या मेरी आत्मा
अगर है आत्मा
तो जलता मैं क्यों हूँ
अगर मैं हूँ
तो पिघलता वो क्यों है
अगर वो है तो
अधूरा मैं क्यों हूँ
अगर मैं हूँ तो
पूरा वो क्यों है
अगर मैं हूँ तो
विद्रोह की साहस
वो करता क्यों है
अगर वो है तो
सामंजस्य मैं बनाता क्यों हूँ
अगर मैं हूँ तो
मोड़ पर वो अटकता क्यों हैं
अगर वो है तो
मोड़ से निकलता मैं क्यों हूँ
कहीं ऐसा तो नहीं
न मैं हूँ न मेरी आत्मा।