कपिल शर्मा
कपिल शर्मा
1 min
6.4K
सैलाब-ए-मंज़र तब भी,आज भी-2
तू आंसुओं का रुकना तो न बदल सका ए दोस्त,
फरिश्ता-ए-ख़ुशी तूने कारण ज़रूर बदल दिये।
छोटों को प्यार बड़ों को करता प्रणाम,
फरिश्ता तू ख़ुशी का, तुझे शत-शत प्रणाम।
तिलिस्म मायानगरी का सब हैरान, परेशान,
धोखेबाज़ी, जालसाज़ी में जकड़ा इंसान।
कुछ बदला हो या ना बदला,
ग़मों की महफ़िलों में चेहरे बदल गये,
सैलाब-ए-मंज़र, बस कारण बदल गये।-2