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कपिल शर्मा

कपिल शर्मा

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सैलाब-ए-मंज़र तब भी,आज भी-2
तू आंसुओं का रुकना तो न बदल सका ए दोस्त,
फरिश्ता-ए-ख़ुशी तूने कारण ज़रूर बदल दिये।
छोटों को प्यार बड़ों को करता प्रणाम,
फरिश्ता तू ख़ुशी का, तुझे शत-शत प्रणाम।

तिलिस्म मायानगरी का सब हैरान, परेशान,
धोखेबाज़ी, जालसाज़ी में जकड़ा इंसान।
कुछ बदला हो या ना बदला,
ग़मों की महफ़िलों में चेहरे बदल गये,
सैलाब-ए-मंज़र, बस कारण बदल गये।-2


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