सिलवटें
सिलवटें
उसके तकिये में सिलवटों को छोड़ आयी हूँ
उसकी चादर में सपनों को समेट आयी हूँ
सपनों में डूब जाती हूँ जब कभी याद करती हूँ उसे
उसकी आँखों में ख़ुद को छोड़ आयी हूँ
जब भी कभी अपने कमरे का पर्दा लगाता होगा
पता है मुझे वो मुझे याद करता होगा
जब कभी ठीक करता होगा सिलवटें उस चादर की
आता तो होगा ख़याल उसे उस दिन का
बिना कुछ कहे ही इजाज़त माँग ली थी उसने
और बिना कुछ बोले ही इजाज़त दे दी थी मैंने
प्यार था या था कुछ और
अब सोचने का दिल नहीं करता
वो जो हुई थी ग़लती कुछ बरस पहले
उसे दोहराने का मन नहीं करता
उसका हाथ मेरे हाथ में था
ये काफ़ी था मुझे
मेरा सिर उसके कन्धे पर था
ये लाज़मी था उसे
मैंने एक बार देखा था उसकी आँखों में
थकान से भरी हुई मेरी आँखों में झाँक रही थीं वो
कुछ कहना था शायद उनको मगर लड़खड़ा रही थीं वो
उसके सिर पे हाथ फेरा था मैंने
जैसे जन्म जन्मांतर का रिश्ता हो मेरा
वो सोता रहा बेफिक्र ख़ामोश मेरी बाहों में
जैसे जन्मो से जागा हो वो यादों में मेरी।