आईना
आईना
रिश्ता जोड़कर कोई तोड़ने की आदत नहीं मुझको,
दिल के सीधे रस्ते को मोड़ने की आदत नहीं मुझको।
काँच के आईने में चेहरा देखकर खुश हो लेता हूँ मैं,
उसकी नज़रों में नज़ारे छोड़ने की आदत नहीं मुझको।
गहरा कितना है बन्धन अब भला कैसे बताऊँ उसको,
कि आँसुओं के सहारे से जोड़ने की आदत नहीं मुझको।।