सुकून रूबरू
सुकून रूबरू
मेरी व्याकुलता को विराम मिला।
मेरी चिंता का चरम थम सा गया।
जब देखा चिड़िया को तुलसी के पौधे पर फुदफुदाते।
राहत मिली देख उसे बुदबुदाते।
कितना सुकून था उस नज़ारे में
सदियों से छुपी उस खुशी को पाने में।
अब तो यह रोज़ का नज़ारा था क्योंकि घर की मुँडेर पर ही चिड़ियों का बसेरा बना डाला था।
अब दिखने लगे थे हर दिशा के पंछी जो बिझड़ गये थे अनेक कारणों से।
हवाएँ अब कलरव सुना रही थी।
कोयल की कुहू कान सहला रही थी।
उड़ते देख उन्हें गगन में उन्मुक्त।
चाह उठी मन में होने की सीमाओं के बंधन से मुक्त।
चाह है पदचिह्न बनाने की।
आस्था है इन सबके लौट आने की।
इनके आशियाने दरख्तों पर बनाने की,
पंछियों के स्वरों में विश्वास की चमक लाने की।।