इतिहास
इतिहास
हाँ, मैं रो रहा हूँ
सच है कि मेरी आँखे सूजी हैं
मेरी आँखो के नीचे काली झाईं पड़ गयी है।
हो भी तो गये कितने वर्ष
मुझको फूट-फूटकर रोते हुए
हाँ मैं इतिहास हूँ, तुम्हारे भारत का इतिहास।
मैंने बहुत कोशिश की
कि लिखने वालों तुम मुझे पूरा लिखो,
पूरा ना भी लिखो तो अधूरा तो ना ही लिखो।
पर कलम तुम्हारी
मर्जी तुम्हारी, समय तुम्हारा, स्याही तुम्हारी ,
मौकापरस्त तुम जो मन आया लिखते चले गये।
मैं रोकता रहा,
तुम छपते चले गये, पन्नों में बँटा पड़ा मैं
तुम टुकड़ों को अलग अलग जिल्द करते चले गये।
मैं घबराया,
कई बार तुम्हें समझाया, खुद से मिलवाया ,
पर तुम किसी और के चश्मे से मुझे देखते रह गये।
टपक गये आँसू,
कुछ गंगा में जा गिरे, कुछ सिंधु में जा मिले ,
पंजाब यहाँ भी लिखा तुमने , पंजाब वहाँ भी लिखा तुमने।
मेरी सिसकियों से बेखबर,
दोनों ओर तुम हिमालय लिखते चले गये,
कश्मीर के पन्ने को लिखकर स्याही तुमने क्यों उंडेल दी?
परवाह न की मेरी तुमने
कुछ पन्ने केसरिया कपड़े में बाँध कर रख लिये
कुछ पन्नों को लाल हरे सुनहरे नीले कपड़ों में बाँध दिया।
काँपते होंठों से मैंने
तुम्हें कई बार रोकने की कोशिश की ,
पर सत्ता के नशे में चूर तुम मुझे रौंदते चले गये।
मेरी लाल आँखो के सामने ,
बदल दिया मेरे कई बच्चों का नाम
मेरे ही सच को झूठ और झूठ को सच लिखते चले गये।
अपाहिज हूँ मैं आज़ ,
रोज़ मेरे अंग कमजोर पड़ रहे हैं
कोई विक्रमादित्य को तो कोई टीपू पर प्रश्न कर रहे हैं ।
मैं कमज़ोर क्या हुआ ,
वाल्मिकी वाले पन्ने तुमने फाड़ दिये,
काशी मथुरा के किस्सों को किस्सा ही बना डाला।
जर्जर कर दिया मुझको
शिवाजी नानक कुंवर बिरसा सुभाष
इन पन्नों की जगह सियासत की तिजारत* ने ले ली।
कंकाल सा देखता रहा मैं
अपने पन्नों को कटते, फटते, छँटते
और मेरे मरे नायकों को मृत्युपर्यन्त जाति बदलते।
अर्थी पर लेटा हूँ मैं ,
श्मशान ले जाने की तैयारी है ,
मौत का कारण खुद मैं लिखूंगा, अब मेरी बारी है।
*व्यापार