ग़ज़ल
ग़ज़ल
पेड़ों की छाँव से,
न उजालों से मिला है।
लज्ज़ते-सफ़र तो,
पाँव के छालों से मिला है।
ये जख़्म जिसे कहते हैं,
हम जिस्म की ज़ीनत,
हमको हमारे,
चाहने वालों से मिला है।
तितली है कभी चाँद,
कभी गुल की शक्ल में,
वो एक मुझे,
कितने हवालों से मिला है।