रात
रात
रात बड़ी सुहानी थी,
वो रात मैं दो दिल तरसे,
आँखों मैं प्यार का समंदर,
मन में सवाल थे,लफ्ज़ तो थे
न जाने क्यों दिल मेरे हाथ से निकल रहा!
मुजे तुमसे बेइंतहा इश्क हो गया,
तुमको पाने का जी करता है,
तेरी चाहत मैं रात मुझे रुलाती
न जाने क्यों दिल मेरे हाथ से निकल रहा!
मुझे तुझसे प्यार है, ए हवा इसकी गवाह है,
लब मैं तेरा ही नाम,ए दिल सबुत है इसका
रात मैं ऐसी गुफ़्तगू हो,
हमको देखके फ़िज़ा भी शर्माते रहै,
न जाने क्यों दिल मेरे हाथ से निकल रहा!
जीवन के मुसाफ़िर प्यार का सफर
साथ काटेगे,तेरी इजाजत लेनी मुझे ,
न जाने दिल क्यों मेरे हाथ से निकल रहा!