कभी पिय
कभी पिय
कभी पिय रूठ जाओ गर,
तो- तुमको मैं मनाऊँगी।।
हुए गर हम कभी रुसवा,
तुम्हें रह-रह सताऊँगी।।
कभी मनभाव बन मेरे,
मुझे बाहों का झूला दो,
करो आगाज प्रणयन का,
स्वप्न सुंदर सजाऊँगी।।
हे मदने तुम रमण रस हो,
तुम्हीं हो दर्द,दवा मेरी,
बनूँ पूर्णांक प्रणयेश्वर,
मैं- जीवन पथ सजाऊँगी।।