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लहर

लहर

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कहने को तो मैं ऐसे, 

समंदर में ही रहती हूँ।

कभी इस किनारे बहती तो, 

कभी उस किनारे बहती हूँ। 

यहाँ लाखों लोग खड़े हैं, 

मेरी सुंदरता को देखने।

सोचती रहती हूं कोई, 

आकर मेरी आवाज़ तो सुने। 


काश कोई मिल जाए, 

दूर किनारों से मुझ में। 

लहरों को किनारों से, 

मिलाने का कोई ख्याल बुने। 

शोर करती रहती हूं, 

दिन भर समुद्र में लिपटे।

कौन जाने कभी यहां तो, 

कभी वहां टकराती हूँ। 


पर इसी समुंदर में खोया है, 

एक अनजान अस्तित्व मेरा। 

जिसे खोजने बड़ी दूर, 

तक मैं चली जाती हूँ। 

मैं शांत रहती हूं कभी कभी, 

कभी कहर भी छिपाती हूँ।


मैं ऊंचाई पर उठते हुए, 

सभी के मन को भाती हूं। 

सुनामी तक जो ला सके, 

मैं वैसे ही एक कहर हूँ।

मैं शांत रहकर भी, 

शोर मचाने वाली लहर हूं। 

 


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