इंतज़ार में हूँ
इंतज़ार में हूँ
जो वज़ूद में नही उस दयार में हूँ,
अब तक तुम्हारे ख़ुमार में हूँ।
अब तो कुछ भी नज़र नही आता,
जाने कौन से दश्त-ए-ग़ुबार में हूँ।
परछाईयाँ ढूँढती फिरती है मुझे,
आजकल आलम-ए-फ़रार में हूँ।
भूलना चाहूँ तो और याद आते है,
अब भी उन फ़रेबों के ऐतबार में हूँ।
अपनी सारी खामोशियाँ तुझे देकर,
मैं अपनी आवाज़ के इंतज़ार में हूँ।
वो मेरे थे, मेरे है, मेरे हो जाएँगे,
रफ़्ता-रफ़्ता इसी गुमान में हूँ।
गर नहीं तेरे ज़हन में मौज़ूद,
तो न आरती में न अज़ान में हूँ।
रिहाई की कोई सूरत नहीं अब,
मैं ख़ुद अपने बयान में हूँ।
ख़ुद को बेख़ुद सौंप कर तुझको,
अब मैं किसके इख़्तेयार में हूँ।
तेरे ख्यालों की बैचेनियों में तख़्सिम हूँ,
पर क्या मैं अब भी तुम्हारे क़रार में हूँ ?