अपरिमित बंधक
अपरिमित बंधक
स्त्री ,, लोचमयी/लावण्यमयी
गहने लकदक/नई गढ़न के
पहने नख से शिख तक
रेशमी परिधान/जगमग जगमग
ऊपर से नीचे तक
सब
ब्रांडेड ब्रांडेड
.....
मिलती सबसे मुस्कुरा के
ऊग आते /कुछ सवाल
स्त्रियां देख देख व्याकुल डाह से
पुरुष देखते/हसरत भरी निगाह से
भ्रमजाल में/उलझी
अपने होने को लेके
आखिर क्या हूँ मैं
?
क्या वो सीता ,जो त्यागी गई राम के द्वारा
या शापित अहिल्या /पत्थर की शिला
जो धन्य हुई राम द्वारा
या द्रौपदी जो /लगाई गई डौन दांव पे
.....
क्योंकि ख़त्म होते ही महफ़िल
मैं क़ैद होने वाली हूँ/फिर से
उसी पिंजरे में/ जिसे नाम तो घर का मिला है पर
.घुटता है दम/हरदम
उस पिंजरे में
जहाँ लगें हैं/सीसी टीवी कैमरे
जो बेधते /साँस साँस
उठना बैठना हंसना बोलना
उस पिंजरे में
इतना भी नही विस्तार/के
फड़फड़ा सकूँ पंख