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क्या लिखूँ ?

क्या लिखूँ ?

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क्या लिखूँ और क्या पढूँ ?

पढ़ता भी हूँ और लिखता भी ।

कब रूकूँ और कब चलूँ

चलता भी हूँ और रूकता भी ।।


क्या सोचूँ और क्या विचारूँ ?

विचारता भी हूँ और सोचता भी ।

पर कब सोचूँ और क्या सोचूँ

यह न जानता और मानता भी ।।


क्या है करना और क्या नही ?

करता भी हूँ करने से मुकरता भी ।

क्या है सही और क्या है गलत

सुनता भी हूँ और बोलता भी ।।


रास्ते पर हूँ या भटक सा गया

मचलता भी हूँ और संभलता भी ।

घेरते है कभी विरोधी कभी अपने

बच निकलता भी हूँ, परखता भी ।।


कभी निराश सा हूँ कभी उदास

जरा सिहरता भी हूँ और सुबकता भी ।

फिर उठ जाता हूँ संघर्ष हेतु

लाख बिखरता भी हूँ, जुडता भी ।।


खुश हूँ कभी अपने आप में,

चहकता भी हूँ, ठहक हँसता भी ।

मुस्कान पे मर जल जाते है लोग

'कमल' खिलता भी हूँ,महकता भी ।।


'कमल' हूँ बस कलम से कहता

ऐसे बोलता भी हूँ और बचता भी ।

यही मेरी आवाज़ यही अंदाज..

इसी में उभरता भी हूँ और सिमटता भी ।।




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