तुम ही तो हो
तुम ही तो हो
क्या तुम बन सकते हो
मेरी मौन प्रीत का असबाब
तू जो छू ले प्यार से
सच में तेरी हो जाऊँ, मर जाऊँ !
जग की हदों से दूर जो तेरा
इश्क ले चले मुझे
प्रेम की गलियों में
मन डूब जाए
तुम्हारी कशिश में
रोशनदान बना लूँ दिल को
इत्मीनान से तुम्हारे
इश्क को झाँकती रहूँ !
संबोधित करूँ
तुम्हें खुदा के नाम से
अगर मेरा समग्र अस्तित्व
जो तुम्हें प्रिय हो जाए
अन्य से परे मैं बन जाऊँ
कभी खास तो कहना !
बस शब्दों के सहारे
स्पर्श करो मुझे जहाँ
तुम्हारे हाथ ना पहुँच पाए
कोई मुश्किल नहीं
बस मेरे दिल के अंधेरे कोने को
अनछुआ प्रकाश देना है!
दूषित झरने बहुत मिले मुझे
उज्जवल दरिया की प्यास है
इस पाक नदी को आलिंगन दे दो
बिना स्पर्श के !
लो तुमने छुआ भी नहीं
और मैं पसीज गई,
महसूस हो रही है
एक शीतल आग
मेरे रोम-रोम को
पुलकित करती।
मतलब तुम ही हो
जिसकी मुझे तलाश थी।