जीवनधारा
जीवनधारा
सोचा था कुछ और क्या हो गया
निकला था घर से अपने गांव के लिए
कि बीवी को कुछ दिन गांव में छोड़ आये।
माँ-बाप की करेंगी सेवा और खुद भी
आराम कर लेगी
जीवन की धारा भी जाने कब
अपना रुख बदलेगी पता ना चला।
पहुँचा जैसे ही गांव में मैं तो
सर पर पहाड़ टूटा
जिस माँ ने दिया था जन्म
वो ही मौत की सैया पर लेटी थी।
ये कैसा इम्तिहान ईश्वर ने ले लिया
माँ का साया ही सर पर से छीन लिया
जो आया है एक रोज जाएगा।
इसी का नाम तो जीवनधारा है।।