Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

काश! की तुम मिलने आती

काश! की तुम मिलने आती

1 min
7K


कोहरे की पहरेदारी थी

काश! की तुम मिलने आती,

सर्द रातों की दुश्वारी थी

काश की तुम समझ पाती,

भेज ही देती किसी तरह

यादों का गर्म बिछौना तुम,

प्रेम पाश के कम्बल को

ओढ़ा दी होती मुझपर तुम,

दिन चमकना भूल गया है

क्या इसकी भी साझेदारी थी,

काश की तुम मिलने आती 

फिर कोहरे की पहरेदारी थी,

इस बेरहम कड़कती सर्दियों से खुदा जहाँ को बचाए,


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama