बचपन
बचपन
क्या कमी है मुझे कुछ पाने और खोने में,
खुशियाँ नहीं है वो दुनिया के किसी कोने में।
सोचता रहता हूँ बस अब उम्र है पचपन की,
मुस्कराता हूँ जब याद करूँ पल बचपन का।
चलो बताते हैं तुम्हें कहानी मेरे बचपन की,
शायद जवाब उठा माँ की गोद में सोने से,
खुशियाँ नहीं है वो दुनिया के किसी कोने में।
पिता भी मेरे क्या खूब ही लाजवाब थे,
मेरे चेहरे में देखते सारे अपने ख्वाब थे।
पैसे नहीं थे तो खुद को घोड़ा बना दिया,
घर घूमाते ही बोले तुम्हें दुनिया घूमा दिया।
मजा नहीं और कहीं जो उनके खिलौने में,
खुशियाँ नहीं है वो दुनिया के किसी कोने में
दुःख का कुछ माहौल था शायद याद नहीं,
चेहरों पर गम लेते बैठे थे वे उदास सभी।
खिलखिलाता सा चेहरा मैंने मुस्करा दिया,
कई उदास चेहरों को पल भर में हँसा दिया।
मज़ा आता था तब मुझे हँसने और रोने में,
खुशियाँ नहीं है वो दुनिया के किसी कोने में।
समय बीता,उम्र बीती, बचपन भी बीत गया,
लोगों को देखकर मैं भी बड़ा होना सीख गया।
फिर आई शादी और बच्चों की ज़िम्मेदारी थी,
घर और बाहर बची थोड़ी बहुत ही यारी थी।
ना रहा मज़ा और ना ही सुकून अब सोने में,
ना ही रहीं खुशियाँ दुनिया के किसी कोने में।
एक य़ार है मेरा जो रहता वृद्धा आश्रम में,
डूब गई है उम्र जिसकी कठिन परिश्रम में।
बच्चों ने जिसे उसके ही घर से भगा दिया,
अब जाकर उसने खुशियों को गले लगा लिया।
कहता है कि जो खुशियाँ है सबको खोने में,
वो खुशियाँ नहीं है दुनिया के किसी कोने में।
मिल गया जवाब मुझे भी मेरी खुशियों का,
सुलझ गई पहलियां मेरी उलझनों की।
मत खोज खुशियों को दूसरों के होने में,
खुशियाँ नहीं है वो दुनिया के किसी कोने में।
बन जा बच्चा फिर से ये बचपन तेरा है,
उम्र नहीं है पचपन की बस उम्र का फेरा है।
भुला दे गम को और खुशियों से थम जा,
बचपना ही है तू फिर से बच्चा बन जा।
आज भी ज़िंदा है तू झाँक दिल के कोने में,
वो खुशियाँ नहीं है दुनिया के किसी कोने में।