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Ramanpreet -

Abstract

5.0  

Ramanpreet -

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बूढ़ा पीपल

बूढ़ा पीपल

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आज भी वो बूढ़ा पीपल तन कर खड़ा है

हर आँधी तूफ़ान से लड़ रहा है ।


वो जिसने नन्हीं कोपलों को पोषित कर सशक्त बनाया

अपनी घनी शाखाओं से एक संसार सजाया

पर साथ तो बस उस माटी ने निभाया

जिसने उसकी जाड़ों को सदा के लिये अपनाया


आज भी वो बूढ़ा पीपल तन कर खड़ा है

हर आँधी तूफ़ान से लड़ रहा है ।


वो जिसने धूप सह कर दी अपनों को छाया 

हर दुःख में उनको शीतलता से सेहलाया

पर अपनों ने कर आघात उसे ठुकराया

जाना तब उसने कौन अपना कौन पराया


आज भी वो बूढ़ा पीपल तन कर खड़ा है

हर आँधी तूफ़ान से लड़ रहा है ।


वो जिसके भीतर आज कुछ सुख रहा है

अपनों की दूरी से जो टूट रहा है

पर फिर भी ज़िम्मेदारी को ज़रूरत समझ वो झूक रहा है 

और नई पनिरी को अपने साये में पलता देख झूम रहा है


आज भी वो बूढ़ा पीपल तन कर खड़ा है

हर आँधी तूफ़ान से लड़ रहा है ।



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