ग़ज़ल
ग़ज़ल
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साथ रहकर भी जानता कहाँ है
वो मेरा है पर आशना कहाँ है ।
ये तमन्ना है दो घड़ी जी लूँ ।
ज़ीस्त का लेकिन रास्ता कहाँ है ।
मुझमें जीता है हर नफ़स लेकिन ।
मैं उसी का हूँ मानता कहाँ है ।
जो दुआ में, इबादतों में रहा ।
वो मुहब्बत का देवता कहाँ है ।
चोट गहरी लगी है दिल पे कोई ।
किसी से उसका वास्ता कहाँ है ।
साथ ख़ुद के हूँ अजनबी की तरह ।
मेरा मुझसे ही सिलसिला कहाँ है ।