कशमकश में रहा
कशमकश में रहा
कशमकश में रहा क्या सुनाऊं तुम्हें
हाल-ऐ-दिल अपना कैसे बताउं तुम्हें
कशमकश में रहा...!
ज़िंदगी की मेरी क्या ज़रूरत है अब
कैसे मंज़िल मोहब्बत बनाऊं तुम्हें
कशमकश में रहा...!
धड़कनों की ज़रूरत क्यों सांसों की है अब
रूह अपनी ग़ज़ल मैं बनाऊं तुम्हें
कशमकश में रहा...!
तुम मोहब्बत को अपने ना समझे ख़ुदा
मैं इबादत मोहब्बत बनाऊं तुम्हें
कशमकश में रहा...!
होश में दिल मेरा मुझ को आने ना दे
अपनी मदहोशी बस मैं बनाऊं तुम्हें
कशमकश में रहा...!
दिल परेशान है अक्ल हैरान क्यों
मैं वजह ग़म जुदाई बताऊंं तुम्हें
कशमकश में रहा...!