ग्रीष्म ऋतु
ग्रीष्म ऋतु
शरद- बसंत ऋतु अब बीती , आई है ग्रीष्म की बारी ।
अब गरमी से झुलस जाऐंगे ,पृथ्वी,पेड़ - पौधे, पशु , नर - नारी।।
अति तप्त सूर्य की क़िरणेंं, अब करेंगी मन मानी ।
सूख जाऐंंगे नदी तालाब, जलाशय , अब न दिखेगा उन में पानी ।।
घोंसलों में छुप जाऐंगे पक्षी , सूनी होगी पेड़ों की डाली।
घर से कोई न निकलेगा बाहर , सड़कें भी होंगी ख़ाली।।
आओ सूर्य देव आप की ही बारी है ,स्वीकार है आतिथ्य आपका यह अरज़ हमारी है।
आप के प्रकोप की तकलीफ़ तो भारी है, पर अतिथि रहे कम दिन इसी में समझदारी है।।
छोटी रातें, लम्बे दिन लेकर आऐ ग्रीष्म ऋतु ।
बुराई के संग अच्छाई का स्वाद चखाऐ ग्रीष्म ऋतु ।।
ईश्वर की कृपा के द्वार इसी ऋतु से खुलते हैं ।
आम , लीची, ख़रबूज़ , तरबूज़ जैसे नायाब फल खाने को मिलते हैं ।।
ग्रीष्म काल का लम्बा अवकाश सभी को सुहाता है ।
तालाबों में तैरना , पहाड़ों में घूमना सबको भाता है।।
एक के बाद एक मौसम आता है और जाता है ।
इसी में प्रभु की दयालुता का अहसास हो जाता है ।।
ग्रीष्म ऋतु से शिक्षा ले कुछ ज्ञान यदि हम पा जाऐं,
टूटे रिश्तों को जोड़े हम।
दिल की ऊष्मा को फैलाऐं,
दया , रहम का भाव बहाऐं , प्रेम पताका लहराऐं।।