मनमर्ज़ी की बात
मनमर्ज़ी की बात
अपने देश के फ़कीर जी
मिलते हैं उस शरीफ से
जिनकी है पहचान बनी
सिर्फ खूनी लकीर से।
यहाँ देश के हर कोने से
चीखें निकल रही हैं,
साहब हैं हाल चाल लेते,
उस दुश्मन शरीफ के।
कभी एक किसान की
मौत का मातम मनाते रहते थे,
आज समय ही नही है
देश के हालात जानने के।
देश के हालात बद से बदतर
होते जा रहे हैं,
और सरकार है कि
जश्ने सालगिरह मना रही है।
देश की हालत खस्ताहाल हो रही है,
बस मीडिया और भाषणों में
सरकार चल रही है।
चुनावों का दौर आते ही
सब कुछ है सुधरने लगता,
परिणाम आते आते
फिर से बिखर है जाता।
जनता की याद किसको
सब अपनों में लगे हैं,
हकीकत की सुध किसको
सब सपनों में पड़े हैं।
कहना मेरा है
देश के इस बड़े प्रधान से,
पड़ोसी देश का दर्द छोड़
दर्द पूछे
अपने देश के जवान
और किसान से...!