किसान और श्रमिक
किसान और श्रमिक
श्रम सीकर से धरती सींचे
तब हरी-भरी लहलहाती हैं
बन विष्णु का अवतार सदा
दुनिया को पोषित करता है।
अभिलाषा नहीं महलों की
कुटिया में भी रह लेता है
दुनियां में किसान कहलाता है
वह धरती मां का बेटा है।
श्रम करता नाम श्रमिक उसका
तन मलिन मगर मन उजला है
सबका जीवन सुगम बनाता
उसका भविष्य कुछ धुंधला है।
हाथों में औजार लिए
वह मजदूरी को निकला है
बस दो रोटी की खातिर
वह दर-दर को भटका है।
श्रम करके कारखाने में
उत्पादन वो करता है
तब देश की समृद्धि बढ़ाने को
जी.डी.पी.भी बढ़ता है।
कहते हैं ये दुनिया वाले
कर्म सदा महान है
फिर तो किसान और श्रमिक
कर से कर कर्म महान हैं।