जिन्दगी और हम
जिन्दगी और हम
जरा बेख़ौफ़ रहिये
तभी जी पायेंगे लम्हे
तलब बेचैनियों की
जिन्दगी जीने नहीं देती।
वो कहते हैं जिसको नाकाफ़ी
हमारे बस का उतना था
जो पैमाने पे औरों की जिये तो
जिन्दगी जीने नहीं देगी।
है फितरत में जिनके
बुलंदी का नशा ऐ दोस्त
इक फकत नाकामी
जिन्दगी उन्हें जीने नहीं देगी।
मुस्कुराएँ, गम को उगले
जो बेहतर हो वही बोले
मौन की भी अपनी जुब़ा है
वर्ना जिन्दगी जीने नहीं देगी।।