नाचते हो जिन बारिशों में तुम
नाचते हो जिन बारिशों में तुम
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नाचते हो जिन बारिशों में तुम
नीड़ न जाने कितने घुल जाते हैं
अलाव हो सेंकते जिन अंगारों का
न जाने कितने घरौंदे स्वाहा कर आते हैं ।
दम घोंट रहे एसी तुम्हारे
आ रही उन सदियों के
जी रहे कर तुम नाला
जल-बिंदु जिनकी नदियों के ।
तृषा शांत न होती तुम्हारी
उदरस्थ कर यद्यपि विश्व समूचा
जाओगे अरे दो गज़ ज़मीं के ही नीचे
मरण-स्थल हो चाहे जितना ऊँचा ।
हँस हँसियाँ नकली भला
तुम किसे बरगला रहे हो
ज़रा पूछना आईने से कभी
हमें बना रहे हो- या खुद को झुठला रहे हो??