रूको माँ दो पल....
रूको माँ दो पल....
रूको माँ, जरा दो पल को ठहर जाओ
पता हैं न, इस पल के बाद मेरा अस्तित्व ही मिट जाएगा,
उस से पहले तुम्हारी कोख में ये दो पल तो जी लूँ
शायद तुम मजबूर हो, नहीं लड़ सकती दुनिया से,
नहीं बचा सकती तुम मेरे नन्हीं साँसों को
मरना मेरा तो अटल निश्चय है तुम्हारा,
उससे पहले काश! तुम मेरे लिए भी लोरियाँ गाती
काश! तुम मेरी नन्हीं उँगलियाँ थाम चलना सीखाती
काश! तुम हर ठोकरों से बचना सिखाती
काश! तुम अपनी हार को मेरी जीत बनाती
चलो, जाने दो माँ ‘मेरे काश!’ के चक्कर कहीं तुम न पड़ जाना,
सुना है अभी यही तेरी कोख में रहकर,
कन्या भ्रूण हत्या पाप है, कोई कह रहा था बाहर,
मेरा तो बस तुम्हें इस पाप से बचाना था लक्ष्य
बेटी हूँ तुम्हारी, क्या हुआ जो तुम अपना नहीं सकी मुझको,
दुनिया की समझ तुम्हें मुझसे ज्यादा है,
धन्य हूँ, तेरे कोख में जो ये दो पल की साँसे मुझे मिली हैं,
हाँ, दुनिया से कुछ था कहना अपने तोतले शब्दों में,
अब मैं कहाँ कह पाऊँगी,तुम ही कह देना सबसे
‘मत मारों हमें, हम बेटियाँ ही सहीं
पर हैं तो ना।
चलो माँ, अब मेरी आँखें बंद करने का वक्त आ गया है,
मुझे तुम्हारे जिस्म से अलग करने की सारी तैयारी भी हो चुकी,
बस! आखिरी ख्वाहिश है-
‘जब बंद करूं आँखें अपनी, तुम पहली और आखिरी लोरी सूना देना’