ढलता सूरज
ढलता सूरज
सुनो.....
ओह ! सुनो तो सही...
कभी तो सुन लिया करो मेरी भी बात !
जब कभी नहीं सुना तो अब क्या सुनोगे छोड़ो भी...
मैं दिखाना चाहती थी तुम्हें ये तस्वीर कितनी सुन्दर है,
देखो ढलता सूरज, उसकी लाली जैसे नई नवेली दुल्हन
के चेहरे पर शर्म की लाली माथे पर चमकती बिन्दिया !
हमेशा से मुझे ढलता हुआ सूरज़ बहुत आकर्षित करता,
याद है तुम्हें जब हम एक टीले पर बैठे और दूर नदी में
धीरे-धीरे डूबते सूरज की परछाईं, चारों तरफ़ लाली,
कई तस्वीरें मैं ले चुकी थी अचानक उस लाली में उभरती,
दो परछाईयाँ मैंने कैमरा उठाया तुमने फ़ौरन मेरे हाथ से ले लिया
जोर की डाँट लगाई, डूबते सूरज़ में किसी की तस्वीर नहीं लेते
उसकी आयु कम होती है !
मैं तो ये बातें नहीं मानती लेकिन तुम्हारी बात तो माननी ही थी ,
मैंने डूबते सूरज़ की तस्वीरें बहुत लीं
लेकिन किसी के साथ नहीं !
मैं तुम्हें यही दिखाना चाहती थी
देखो न कितनी ख़ूबसूरत तस्वीर है
बीच में डूबता सूरज़ और दोनों तरफ़
हमारी सीमा की रक्षा करने वाले जवान,
मैंने तो नहीं ली किसी ने तो ली है...
मैं कहना चाहती थी मेरी एक तस्वीर
नदी या समुन्द्र में डूबता प्रतीत
होते हुए सूरज़ के साथ खिंच दो...
अगर तुम्हारी बात सही भी हो तो,
क्या फर्क़ पड़ता है उम्र के इस पड़ाव में!
बोलो खींचोगे न,
मानोगे मेरी बात न ..!